मुंबई, 22 अप्रैल। भगवान महावीर के 2550 वें निर्वाण वर्ष के उपलक्ष्य में ‘हिंदी विवेक’ मासिक पत्रिका द्वारा प्रकाशित ‘तीर्थंकर भगवान महावीर’ विशेषांक का विमोचन समारोह महावीर जयंती के शुभ अवसर पर पुणे में आयोजित एक गरिमापूर्ण समारोह में सम्पन्न हुआ। जैन तपस्वी उपाध्याय प. पू. प्रवीण ऋषि जी महाराज और रा. स्व. संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर के करकमलों द्वारा विशेषांक का विमोचन किया गया।
इस दौरान मंच पर हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे, हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर, हिंदी विवेक की कार्यकारी सम्पादक पल्लवी अनवेकर, सुहाना प्रवीण मसालेवाले के डायरेक्टर विशालकुमार राजकुमार चोरडिया, पोपटलाल ओसवाल एवं राजेंद्र बाठिया उपस्थित थे।तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्मकल्याणक दिवस ( 21 अप्रैल) के शुभ अवसर पर पुणे स्थित गोयल गार्डन में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जैन मुनि द्वारा मंगलाचरण का गायन कर महावीर वंदना से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। इसके बाद मंच पर उपस्थित मान्यवरों का परिचय देकर उनका स्वागत सम्मान किया गया। हिंदी विवेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर ने अपनी प्रस्तावना में कहा कि तीर्थंकर महावीर जी के विचारों एवं सिद्धांतों को आत्मसात करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह सम्पूर्ण मानवता एवं प्राणिमात्र के लिए हितकारी है। उन्होंने बताया कि तीर्थंकर महावीर के विचारों, सिद्धांतों एवं संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से इस विशेषांक का प्रकाशन किया गया है। विशाल कुमार चोरडिया ने अपनी मनोभावना व्यक्त करते हुए कहा कि भगवान महावीर के विचार कालजयी हैं। यदि हम उनके मार्ग पर चलें, तो सुख-शांति और समृद्धि मिल सकती है। उन्होंने कहा कि हिंदी विवेक ने मुझे भी महावीर जी के विचारों को प्रचारित करने हेतु सेवा-सहयोग के लिए सहभागी बनाया, उसके लिए मैं उनका अभिनंदन और आभार करता हूं।
इसके बाद पद्मश्री रमेश पतंगे ने अपने वक्तव्य में कहा कि विश्व में अनेक देश हैं, मगर सबकी अपनी-अपनी पहचान है। जैसे यूरोप-अमेरिका को उनकी भौतिकता के लिए जाना जाता है, लेकिन भारत धर्मभूमि है, इसलिए इसे तपोभूमि के रूप में जाना जाता है। वेद काल से लेकर आज तक भारत धर्म भूमि के रूप में विख्यात है। उन्होंने कहा कि इसे धर्म भूमि के रूप में टिकाए रखने के लिए जिन संत, महात्मा और महापुरुषों ने अपना योगदान दिया, उनमें महावीर जी अग्रणी रहे हैं। इसीलिए भारतीय संविधान में भी महावीर जी के अहिंसा के विचारों को महत्व दिया गया है और आर्टिकल 21 में कहा गया है कि कानून की प्रक्रिया पूर्ण किये बिना किसी को फांसी की सज़ा नहीं दी जा सकती। सुनील आंबेकर जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी विवेक एक वैचारिक प्रबोधन का उपक्रम है।
इसके द्वारा राष्ट्र, धर्म और समाज सेवा के लिए निरंतर प्रासंगिक विषयों पर विशेषांक एवं ग्रंथ प्रकाशित किये जाते हैं और यह कार्य उल्लेखनीय एवं अभिनंदनीय है। उन्होंने कहा कि हज़ारों वर्षों पहले महावीर जी ने जो मार्गदर्शन दिया, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। वर्तमान समय की सभी समस्याओं का समाधान उनके द्वारा बताये गये सिद्धान्तों का पालन कर किया जा सकता है। इसके साथ ही सांस्कृतिक जीवन मूल्यों के प्रति भी जागरूक होकर संकल्पबद्ध होना होगा।
सबसे अंत में उपाध्याय प. पू. प्रवीण ऋषि जी महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि दुनिया में अनेक देश सत्ता और शस्त्र से विजयी होना चाहते हैं, लेकिन भगवान महावीर ने केवल संयम, सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्तवाद आदि सिद्धांत रूपी शास्त्रों से सभी को जीत लिया। हमें समग्र दृष्टि रखते हुए कर्त्तव्य भाव से महावीर जी के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। ओशो ने कहा था कि दुनिया के समक्ष केवल दो ही मार्ग हैं, एक महावीर का और दूसरा महाविनाश का। हिंदी विवेक के कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि महावीर जी के विचारों को लेकर केवल एक विशेषांक प्रकाशित करने तक सीमित न रहें, बल्कि प्रत्येक अंक में उनके विचारों का दर्शन होना चाहिए। महावीर जी का क्या दृष्टिकोण है यह दुनिया तक पहुॅंचाना आवश्यक है।
विवेक ही धर्म है और यह एक ऐसा सूत्र है, जो हमें सही और गलत में अंतर करना सिखाता है। उन्होंने कहा कि तीर्थंकर भगवान महावीर पर विशेषांक प्रकाशित करने के लिए मैं हिंदी विवेक का अभिनंदन करता हूं। हिंदी विवेक द्वारा प्रकाशित ‘तीर्थंकर भगवान महावीर’ विशेषांक को सफल बनाने में महत्वपूर्ण सहयोग देनेवाले विशाल कुमार राजकुमार चोरडिया, सुजय शाह, परेश शाह, अनिल नाहर, राजेंद्र बाठिया, प्रकाश धोका, वर्धमान शाह को सुनील आंबेकर जी के हाथों शाॅल और पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। इसके साथ ही इस विशेषांक को सफल बनाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाले हिंदी विवेक के प्रतिनिधि दिलीप कुलकर्णी को भी सुनील आंबेकर जी के हाथों शाॅल और पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
हिंदी विवेक की कार्यकारी सम्पादक पल्लवी अनवेकर ने कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन किया और हिंदी विवेक के मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव प्रशांत मानकुमरे ने सभी का आभार जताया।